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विश्व हिंदी दिवस | हिंदी लेखक / साहित्यकारों को नमन

विश्व हिंदी दिवस | हिंदी लेखक / साहित्यकारों को नमन
on Jan 10, 2022
Hindi Diwas

इस विश्व हिंदी दिवस,

Frontlist नमन करता है, हिंदी को हिंदी बनाने वालों, हिंदी भाषा के शिल्पकारों को - 


 

1. भारतेंदु हरिश्चंद्र

हिन्दी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में इनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिन्दी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेंदु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुन्दर के अनुवाद से हुई। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किन्तु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेंदु ने ही हिन्दी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया।

2. देवकी नंदन खत्री

बाबू देवकीनन्दन खत्री (18 जून 1861 - 1 अगस्त 1913) हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोदना, कटोरा भर, भूतनाथ जैसी रचनाएं की। हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में उनके उपन्यास चंद्रकांता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जितने हिन्दी पाठक उन्होंने उत्पन्न किये उतने किसी और ग्रंथकार ने नहीं किये।

3) प्रेमचंद

प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। उनकी रचनाओं में गरीब श्रमिक, किसान और स्त्री जीवन का सशक्त चित्रण उनकी दर्जनों कहानियों और उपन्यासों में हुआ है, 'सद्गति',  'कफ़न', 'पूस की रात' और 'गोदान' में मिलता है। 'रंगभूमि', 'प्रेमाश्रम' और 'गोदान' के किसान आज भी गाँवों में देखे जा सकते हैं।


4) धर्मवीर भारती

वैसे तो भारती जी, प्रयोगवादी कवियों में प्रमुख थे।

उनके काव्य में छायावाद, स्वच्छंदतावाद और प्रयोगवाद के दर्शन होते हैं। प्रमुख रचनाएं हैं... गुनाहों का देवता, अंधायुग, कनुप्रिया इत्यादि।  सन 1959 में इन्होंने ‘धर्मयुग’ पत्र के संपादक का कार्यभार संभाला।  ‘धर्मयुग’ के अतिरिक्त उन्होंने ‘निकष’ तथा ‘संगम’ नामक पत्रों का भी संपादन किया।

5) जयशंकर प्रसाद

छायावाद के चार स्तम्भों में से एक श्री प्रसाद जी ने कविता, कहानी, निबंध, नाटक, उपन्यास, आलोचना और पत्रकारिता के क्षेत्र में नए प्रतिमान स्थापित किये और आंसू, झरना, लहर, कालजयी काव्य कृतियों की रचना की। ... चंद्रगुप्ता, स्कंदगुप्त आदि इनके लोकप्रिय ऐतिहासिक नाटक है।

6) रामधारी सिंह "दिनकर"

दिनकर' जी की गणना आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है। हिन्दी काव्य-जगत् में क्रान्ति, ओज और प्रेम के रचयिता कवि के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है। विशेष रूप से राष्ट्रीय चेतना एवं जागृति उत्पन्न करनेवाले कवियों में उनका विशिष्ट स्थान है।


7) महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा भी कहा जाता है। छायावाद के महान कवि व्यक्तित्वों में प्रसाद, पन्त और निराला की तरह वे भी अमर हैं। उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता में नारी की अंतर्वेदना को सामाजिक स्वर में अभिव्यक्ति दी है और उसको उद्दातता से जोड़ा है। पद्य के साथ ही साथ उनका गद्य भी बीसवी सदी के हिंदी साहित्य में अपनी अलग पहचान रखता है। उनकी कहानियां मानवीय मूल्यों का प्रतिबिम्ब हैं।


8) अज्ञेय

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ को आधुनिक काव्य जगत में ‘प्रयोगवाद‘के प्रवर्तक एवं प्रसारक के रूप में जाना जाता है।


9) श्रीलाल शुक्ल

श्रीलाल शुक्ल (31 दिसम्बर 1925 - 28 अक्टूबर 2011) हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। वह समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात थे। उनका पहला प्रकाशित उपन्यास 'सूनी घाटी का सूरज' (1957) तथा पहला प्रकाशित व्यंग 'अंगद का पाँव' (1958) है। स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ।


10) मोहन राकेश

मोहन राकेश ने नाटक, उपन्यास, कहानी, यात्रा वृत्तान्त, निबन्ध आदि विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की। मोहन राकेश की रचनाओं में गज़ब की प्रयोगशीलता थी। नई कहानी के दौर में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। 'हिंदी साहित्य’ में उनके अमूल्य योगदान के लिए राकेश को 1968 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान से नवाज़ा गया।


11) सूर्यकांत   त्रिपाठी   निराला

सूर्यकांत   त्रिपाठी   निराला   हिन्दी   कविता   के   छायावादी   युग   के   चार   प्रमुख   स्तंभों   में   से   एक   माने   जाते   है।   अपने   समकालीन   अन्य   कवियों   से   अलग   उन्होंने   कविता   में   कल्पना   का   सहारा   बहुत   कम   लिया   है   ओर   यथार्थ   को   प्रमुखता   से   चित्रित   किया   है।   वे   हिन्दी   में   मुक्तछंद   के   प्रवर्तक   भी   माने   जाते   है।   सूर्यकान्त   त्रिपाठी   निराला   की   काव्यकला   की   सबसे   बड़ी  विशेषता   है   चित्रण   कौशल।   आंतरिक   भाव   हो   या   बाह्य   जगत   के   दृश्य   – ‘ रूप ,  संगीतात्मक   ध्वनियाँ   हो   या   रंग   और   गंध ,  सजीव   चरित्र   हों   या   प्राकृतिक   दृश्य ,  सभी   अलग - अलग   लगनेवाले   तत्वों   को   घुला - मिलाकर   निराला   ऐसा   जीवंत   चित्र   उपस्थित   करते   है   कि   पढ़ने   वाला   उन   चित्रों   के   माध्यम   से   ही   निराला   के   मर्म   तक   पहुँच   सकता   है।

12) मन्नू भंडारी

मन्नू भंडारी जी ने नई कहानी आंदोलन में अपना विशेष योगदान दिया। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण किया है। उन्होंने पारिवारिक जीवन, नारी-जीवन एवं विभिन्न वर्गो के जीवन की विसंगतियों को विशेष आत्मीय अभिव्यक्ति प्रदान की है।

13) हरिशंकर परसाई

वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं¸ जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्ज़ा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है।

14) बाबा नागार्जुन

सोच और स्वभाव से कबीर एवं देश-दुनिया के खट्टे – मीठे अनुभवों को बटोरने वाले यायावर की तरह जीवन-यापन करने वाले बाबा बैद्यनाथ मिश्र मैथिली में ‘यात्री’, हिन्दी में ‘नागार्जुन’ के अलावा साहित्य में अन्य नामों से भी जाने जाते है। जैसे संस्कृत में ‘चाणक्य’, लेखकों, मित्रों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं में ‘नागाबाबा’।

15) निर्मल वर्मा 

निर्मल वर्मा का मुख्य योगदान हिंदी कथा-साहित्य के क्षेत्र में है। वे नयी कहानी आंदोलन के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। उनकी साहित्यिक रचनाएँ निम्नलिखित हैं- कहानी संग्रह- परिंदे, जलती  झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गरमियों में, कब्चे और काला पानी, बीच बहस में, सूखा तथा अन्य कहानियाँ आदि।

16) दिव्य प्रकाश दुबे

हिंदी में “नई वाली हिंदी’ का नारा देने वाले तथा बेस्ट सेलर की परंपरा को स्थापित करवाने में जिन युवा लेखकों का नाम शामिल है, उसमें दिव्य प्रकाश दुबे शुमार हैं। उनका जन्म 8 मई, 1982 को लखनऊ में हुआ। रुड़की के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से पढ़ाई करने वाले इंजीनियर साहब को शब्दों का चस्का ऐसा लगा कि 'मसाला चाय', ‘अक्तूबर जंक्शन’ और ‘इब्नेबतूती’ जैसी पुस्तकें लिख डालीं।

 

सभी को विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनायें!! 

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